Wednesday, March 11, 2020

आख़िरी कॉल.। (भाग -5)



आख़िरी कॉल.। (भाग -5)


लिंक (भाग -4)

रुबीना ने चुटकी लिया , "अब जो कुछ भी हो आप ही किस्मत में हो तो झेलना तो पड़ेगा न..; हहहहह। "
राहुल भी हंस रहा था.... "किस्मत औऱ मैं.! मोहतरमा मैं किस्मत नहीं फूटी क़िस्मत हूँ...."
दोनों हँसने लगे........


राहुल हँस रहा था , "लेक़िन कहीं न कहीं रुबीना के भईया का  उससे मिलने आना उसे हज़म नहीं हो रहा था..।

उसके दिमाग में कई बातें चल रही थी !"

इसी उधेड़बुन में आख़िर उसने पूछ ही दिया , "अच्छा ये बताइये आप अपने भइया से क्यूँ मिलवा रहे हो मुझे, कोई खास बात है क्या..?"


रुबीना  औऱ तेज़ हंसने लगी , लेक़िन इस हंसी के पीछे एक हल्का सा डर था ..... उसने राहुल को बिन पूछे इतना सबकुछ प्लान जो कर लिया था।

ख़ैर उसको एक अलग लेवल का विश्वास हो चुका था अपने प्रेम पर।

वो ख़ुश थी अपने फ़ैसले से.। 

वो अंदर से तो बहुत झिझक रही थी लेक़िन बाहर ख़ुद को बिल्कुल सहज दिखाते हुए बोला, "ये लीजिये! अब लड़की वाले लड़के से क्यूँ मिलने आते हैं भला..! जाहिर सी बात है भइया आपसे  शादी के लिए बात करेंगे "

राहुल मामला भाँप गया था।

वो स्तब्ध था... लेक़िन बाहर से ख़ुद को सहज बनाये रखने की भरपूर कोशिशें कर रहा था.!

अपने जीवन में कई बार उसने लड़कियों के प्रस्ताव ठुकराए थे,  लेकिन ये पहली बार था जब राहुल निःशब्द हुआ जा रहा था.....। 

औऱ इसके पीछे केवल एक हीं वजह थी के रुबीना पिछली लड़कियों से बिल्कुल अलग थी..; "कहीं न कहीं राहुल भी प्रभावित था उससे"

                  एक खोंखले से ठहाके के साथ राहुल ने अपना आख़िरी अस्त्र भी छोड़ दिया.......  "हएं...! आपके भईया मुझसे शादी करना चाहते हैं..! अरे भई समझाइये उनको मैं उस टाइप का लड़का नहीं हूँ... हमको माफ़ करें... हम तो किसी लड़की से भी शादी करने के लिए अभी प्रिपेयर नहीं महसूस कर रहे हैं" माफ़ कीजियेगा ......।


रुबीना अचानक से चुप हो गई थी ! 

उसको शायद आभास हो गया था कि राहुल के मन में क्या चल रहा है.., उसका हंसना बन्द था...।

वो एकटक राहुल को निहार रही थी...। अब उसकी आँखें चमकने लगी थी औऱ एकाध बूंदे गालो पर लुढ़क चली थीं....। 

वो चुप थी, बिल्कुल चुप..!

                   राहुल ने बहुत दिनों बाद रुबीना को चुप देखा था, औऱ ये चुप्पी राहुल को परेशान किये जा रही थी..।

उसने खुद से वायदा किया था कि अब कभी रुबीना को रोने नहीं देगा, कमसे कम तबतक जबतक उसके साथ है !

वो सोच रहा था, कोई जवाब जिससे रुबीना फ़िर से ठहाके भरने लगे. ...।
                   

                 राहुल अभी सोच में ही डूबा था तबतक उसके हाथों पे कुछ ठंढा स्पर्श महसूस हुआ........ ये रुबीना थी! 

उसके सामने नीचे अपने घुटनों के बल रुबीना याचक की मुद्रा में थी...। 

उसकी आँखों से गिरती एकाध बूंदे अब निरन्तरता के भाव में झरने का रूप ले चुकी थी। 

राहुल के आँखों में एकटक झाँकती उसकी आँखें बहुत कुछ कह रहीं थीं....। 

राहुल भी अच्छे तरह से पढ़ पा रहा था उसकी आँखों को..।
                    

                   अचानक से रुबीना की आवाज़ ने दोनों की चुप्पी से उपजी शांति को तोड़ा, "राहुल मुझसे शादी करलो प्लीज़....!

मैंने आपके ही साथ जीवन की कल्पना कर ली है...;

मैं जानती हूँ कि ये मेरी ग़लती है कि मैंनें आपके फ़्रेण्डशिप को प्रेम मानकर जिया है....!

मैं गुनहगार हूँ आपकी..., औऱ मुझे अपने इस गुनाह की हर सज़ा मंजूर है...!

लेक़िन, प्लीज़ राहुल आप मुझे अपना लो........ मैं आपके बग़ैर जी हीं नहीं पाऊँगी....।"


उसकी आवाज़ में याचना थी..; गिड़गिड़ाहट में मार्मिकता ऐसी कि क्या बताऊँ, ऐसा लग रहा था  जैसे कोई मरने वाला अपना जीवन भीख में मांग रहा हो...। 
     

                         राहुल बहुत परेशान था..! उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था , या फ़िर उस समय वो चुप रहना ही उचित समझ रहा था..। 

रुबीना के आँसू उससे देखे नहीं जा रहे थे... लेक़िन फ़िर भी वह चुप था.।

अचानक रुबीना के मोबाइल में रिंगटोन बजी, उसने दो - तीन रिंग्स में ही कॉल रिसीव कर लिया.। 

कॉल पर सद्दाम की आवाज़ गूँजी, "हाँ किधर हो तुमलोग .? मैं अभी ये होटल के बाहर खड़ा हूँ , अंदर आ जाऊँ क्या..?"

 रुबीना ने बिना जवाब दिए कॉल काट दी.।


वो उसे रिसीव करने बाहर की तरफ ही जाने लगी, उसकी आँखों से आँसू अभी भी वैसे हीं झर रहे थे...;

जैसे - तैसे आँखें पोंछते हुए वो बाहर निकलने लगी.।



क्रमशः......

©

✍🏻 आदित्य प्रकाश पाण्डेय

Monday, March 9, 2020

आख़िरी कॉल.। (भाग -4)




आख़िरी कॉल.। (भाग -4)


                   कुल मिलाकर पूरे मुहल्ले के लिए ये परिवार बिल्कुल वैसा ही था जैसे कौवों के बीच हंस हो....।


दोपहर के डेढ़ बज रहे थे औऱ सिरहाने के पास पडे  फ़ोन में बेतरतीब अलार्म बजा जा रहा था.; कोई दो - तीन बार इग्नोर करने के बाद आखिरकार राहुल को जगना ही पड़ा.!

                वो उठा मुँह धोया तबतक उसे अचानक से याद आया कि अभी रुबीना से मिलने भी जाना है .।
वो हड़बड़ी में इधर - उधर दौड़कर तैयार होने लगा ; रविवार का दिन था तमाम काम थे उसके जिम्मे लेक़िन अभी तो ये हाल था कि उसके नहाने के लिए भी समय नहीं बच पाया था।


फ़िर क्या हमेशा की तरह ढेर सारा बॉडी-स्प्रे , और सिर में हल्का तेल पोतकर   राहुल तैयार हो गया था!  ब्लू जीन्स औऱ सफ़ेद कुर्ता पहनकर राहुल बिल्कुल वैसे ही तैयार हुआ था जैसे रुबीना ने कहा था.।


राहुल ने जल्दी से बाइक निकाली औऱ रेस्टोरेंट की तरफ निकल पड़ा , रास्ते में भी उसके मन में कोई ख़ास मीटिंग जैसे भाव  नहीं थे! वो लगभग अब मान चुका था कि रुबीना किसी फ़्रेंड से ही मिलवाने वाली है...।


"क्या होगा ज्यादा से ज्यादा कॉफ़ी पीयेंगे औऱ फ़िर एकाध घण्टे बातें होंगी.; कोई ज़्यादा पहचान वाला तो होगा नहीं.... औऱ होगा भी तो कैसे रुबीना के अलावा उसके परिवार के बारे में भी कोई बात नहीं किये आज़तक रिश्तेदारों की तो पूछो ही मत....
ख़ैर, कोई भी होगा मुझे अच्छे से आता है कि कैसे मिलना है उनसे , उसे महसूस नहीं होने दूँगा की पहली बार मिला हूँ ..!"
राहुल खुद में बुदबुदाये जा रहा था, कभी - कभी अपनी योग्यताओं पर खुद को शाबाशी भी दे रहा था..।
औऱ दे भी तो क्यूँ नहीं वो वास्तव में शाबाशी योग्य था, "उसमें बहुत सी आदतें असामान्य थी.. दुर्लभ थीं"


               राहुल अभी इन्हीं बातों में डूबते - उतराते आगे बढ़ रहा था की अचानक बारिश होने लगी। शहर का ये इलाका अभी खाली प्लॉट्स से भरा पड़ा था, कुछ प्लॉट्स में कंस्ट्रक्शन तो चल रहा था लेक़िन बारिश की वजह से वहाँ भी काम बंद पड़ गया था.।


राहुल चाहता तो वहीं किसी तिरपाल के नीचे खुद को भीगने से बचा लेता, लेक़िन घड़ी देखकर उसका इरादा बदल गया.; 

        "वो भींग भी सकता था औऱ कड़े धूप में तप भी सकता था ..; ना कि केवल रुबीना के लिए बल्कि किसी भी महिला के लिए उसकी यहीं सोच रहती, यहीं स्टैंड रहता.!

 ये सनातन पोषित सभ्यताओं की सुंदरता है.।"


गाड़ी कुछ सड़को औऱ गलियों से होती हुई अब कॉफी शॉप के सामने ख़डी हो चुकी थी.; राहुल ने हैंडल लॉक किया औऱ अपने बालों को झटक कर पानी सुखाने लगा. ।
बारिश कुछ ज़्यादा तो नहीं आई, लेक़िन कुर्ते को भिगोने के लिए पर्याप्त थी.; भींगे हुए सफ़ेद कुर्ते से पीला जनेऊ स्पष्ट औऱ आकर्षक दिख रहा था।


राहुल ज़्यादा भक्तिभाव तो नहीं रखता था, लेक़िन अपनी सभ्यता औऱ परम्पराओं के लिए उसके हृदय में अत्यंत सम्मान की भावना थी..।
              वो जनेऊ पहनता था, कभी - कभार पास वाले मंदिर पर पुजारी बाबा को कुछ पैसे भी दे आता था., "उसको ये मालूम था कि इस नए दौर में सो-कॉल्ड मॉडर्न हिंदुओं के मोहल्ले में पुजारी बाबा को कभी -  कभार भूखे पेट भी सोना पड़ जाता है.।"


             उसने मुँह हाथ से पानी पोंछा औऱ शॉप के अंदर प्रवेश कर गया। कुछ ज़्यादा भीड़ नहीं थी... पीछे कोने वाले टेबल पर रुबीना इन्तिज़ार में बैठी थी.।
       "लेक़िन ये क्या वो तो अकेली है!" राहुल   सोचते हुए आगे बढ़ा.। 

रुबीना ने उठकर राहुल को प्रणाम किया औऱ दोनों आम

ने - सामने वाली कुर्सी पर बैठ गए.।


ये क्या आप किसी से मिलवाने वाले थे मुझे ..? राहुल ने सवाल किया....


रुबीना हल्की डरी हुई सी लेक़िन ज्यादा एक्साइटेड थी उसे विश्वास था कि भाई को राहुल पसन्द आएंगे...; वो मुस्कुरा के बोली "अरे बाबा वेट कीजिए भाई जान निकल गए हैं वहां से, अब पहुँचने वाले होंगे... शायद बारिश में कहीं रुक गए है। अब हर कोई आपकी तरह मेरे लिए भींग तो नहीं सकता ना..."


राहुल हल्का चौंक कर बोला...

 "आपके भइया आ रहे हैं..., वो भी मुझसे मिलने!

वाह.! मैं कुछ ज्यादा हीं पॉपुलर नहीं हो गया आजकल.! "

              

 रुबीना ने चुटकी लिया , "अब जो कुछ भी हो आप ही किस्मत में हो तो झेलना तो पड़ेगा न..; हहहहह। "


राहुल भी हंस रहा था.... "किस्मत औऱ मैं.! मोहतरमा मैं किस्मत नहीं फूटी क़िस्मत हूँ...."


दोनों हँसने लगे............



लिंक (भाग -5)



©


✍🏻 आदित्य प्रकाश पाण्डेय

Sunday, March 8, 2020

आख़िरी कॉल.। (भाग -3)



आख़िरी कॉल (भाग -3)


लिंक (भाग -2)

वो सोच रहा था रुबीना भी समझ जाएगी समझाने से।

रविवार का दिन था , 6 बजे सुबह में ही फोन की घण्टी बजी.; "राहुल दो दिनों से लगातार ऑफिस से लेट आ रहा था सो नींद अधूरी ही मिल पाई थी".।
वो झल्लाते हुए बोला  "हाँ.. कौन इतनी सुबह यार....??"

उधर से रुबीना की आवाज़ गूँजी "हाँ जी मैं.......  गुड मॉर्निंग..... अभी सो रहे होंगे आप मुझे मालूम है.... सॉरी, सॉरी.. लेकिन अर्जेंट था इसीलिए आपको परेशान किया... आप सुन रहे हो ना...? आप गुस्सा तो नहीं हुए ना..??

राहुल की झुँझलाहट  अब मुस्कुराहट में तब्दील हो चुकी थी, उसने हँसते हुए कहा "अरे देवी मैं क्यूँ गुस्सा होने लगा आप पर ! आप बोलने का मौका ही कहाँ देते हो कि मैं जवाब दूँ..... कहिये क्या खास बात है जो इतने बेताब हुए जा रहे हो आप..?"

          रुबीना कुछ ज्यादे  हीं जल्दीबाज़ी में थी; हड़बड़ाहट में उसने बस इतना ही बोला "कॉफ़ी कोलाज आ जाइयेगा ढाई बजे औऱ हाँ कुछ अच्छे कपड़ों में, किसी से मिलवाना है आपको..... ओके... बाय.. "
और उसने फ़ोन कट कर दिया.।


राहुल भी फ़ोन सिरहाने रखकर फिर से लेट गया, उसने ये सोचा कि कोई फ़्रेंड होगी या होगा! 
"उसे ये सब बातें इतनी सीरियस भी नहीं लगती थी औऱ इनका ज्ञान भी नहीं था..।"
फ़ोन में डेढ़ बजे का अलार्म सेट करके वो फ़िर नींद के आगोश में समा गया.।


इधर रुबीना अपने तैयारियों में व्यस्त थी.;
बार - बार नाखूनों में रंग लगाती और हटाती .! 
क्या करे उसे तो ये भी नहीं मालूम था न, कि राहुल को कौन सा रंग भाता है.। वो तो आरम्भ में थी एक ऐसे प्रेम कहानी के जिसके लिए राहूल ने कुछ सोचा भी नहीं था।
रुबीना के मन में तरह - तरह के सवाल आ रहे थे । वो खुद से पूछ रही थी, औऱ खुद को ही जवाब दे रही थी.!
"क्या भाई जान को राहुल जी पसन्द आएंगे.?  मेरा हाल फ़ातिमा जैसा तो नहीं होगा ना.? क्या मुझे प्रेमविवाह करने की आजादी मिलेगी, या मेरा भी जबरन किसी औऱ के साथ निकाह करा दिया जाएगा"
लेक़िन इन सभी सवालों के जवाब में उसे सद्दाम का कहा याद आ जाता था, "देख रुबीना तू पढ़ रही है औऱ हमलोग तुझे ऐसे जाहिलियत नहीं देखने देंगे तुझे जब मर्जी जिससे मर्जी तू निकाह कर सकती है बस लड़का अच्छा चुनना जो हमें पसन्द आये......!"


प्रोफेसर बशीर  अपने इलाके के इज्जतदार लोगों में गिने जाते थे, और नौकरी रहते इज्ज़त के साथ पैसे भी अच्छे कमाएँ थे, दो ही बच्चे थे इसलिए उन्हें अच्छी शिक्षा भी नसीब हो पाई थी।
सद्दाम रुबीना से दो साल बड़ा था औऱ ग्रेजुएशन के बाद लाल मस्जिद के एक ट्रस्ट में काम करने लगा था!
                   कुल मिलाकर पूरे मुहल्ले के लिए ये परिवार बिल्कुल वैसा ही था जैसे कौवों के बीच हंस हो....।




लिंक (भाग -4)



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✍️ आदित्य प्रकाश पाण्डेय


Friday, March 6, 2020

आख़िरी कॉल.। (भाग -2)



आख़िरी कॉल (भाग -2)

लिंक (भाग -1)

उसे याद आ रही थी हर वो बात जो उसने अपने शुरुआती दिनों में बड़े ही ईमानदारी से कह दी थी.; सारे वायदे उसकी कानों में गूँज रहे थे..।

राहुल रो रहा था आज, "अपने कुछ फैसलों पर".।कोस रहा था अपनी कुछ आदतों को।


साल भर पहले ही एक दूसरे से मिले थे  दोनों ...; राहुल के ऑफिस फ्रेंड की गर्लफ्रैंड थी रुबीना.।
उस दोस्त ने एक जगह बहुत बड़े लफड़े में फंसा कर छोड़ दिया था रुबीना को, तब राहुल ने बहुत साथ दिया औऱ रुबीना को इस प्रॉब्लम से निकाल भी दिया था।


                    राहुल बचपन से ही औरतों के प्रति बहुत श्रद्धा रखता था.। वज़ह ये था कि उसकी माँ ने उसके जन्म के समय अपने प्राण त्याग दिए थे !
वो एहसास करता था एक स्त्री के दुःख को , औऱ अपनी इन्हीं भावनाओं के वज़ह से वो स्कूल के ज़माने से ही किसी भी लड़की के लिए मारपिटाई करने को तैयार हो जाता था।
कॉलेज में तो लड़कियों ने उसे "फ़ायरवॉल" नाम दे दिया था.।

 

                हाँ तो राहुल ने आदतन उसकी भी बहुत हेल्प करी, लेक़िन इस हेल्प को रुबीना प्यार समझ बैठी.।
वो राहुल के एहसानों से दबे महसूस कर रही थी खुद को.।
उसकी भी ग़लती नहीं थी, वो टूट चुकी थी औऱ राहुल उसे दोबारा जोड़ने में लगा था.; रोज़ घण्टों फ़ोन पर बातें होती थी। कभी - कभार ऑफिस की छुटियों में कॉफ़ी, बर्गर वगैरह के बहाने भी राहुल उसे बुला लिया करता था, वो चाहता था कि जितनी जल्दी हो सके रुबीना फ़िर से अपने जीवन को जीने लगे .।
ये सिलसिला बढ़ता जा रहा था, लेक़िन राहुल को अब रुबीना का उसके प्रति झुकाव महसूस होने लगा था.;
लड़कियों के साथ ये समस्या पुरानी है, "अगर कोई लड़का ईमानदारी से उनकी हेल्प कर दे या करने की कोशिश करे  तो वो उसे या तो प्रेम समझ बैठती है या फ़िर उस लड़के को दिलफेंक घोसित कर देतीं हैं।"
उसके लिए ये पहली बार नहीं था इसीलिए वो निश्चिंत था। पढाई के दिनों में भी दो-तीन लड़कियों को समझा - बुझाकर इनकार किया था उसने.।
वो सोच रहा था रुबीना भी समझ जाएगी समझाने से।


©

✍️ आदित्य प्रकाश पाण्डेय