आख़िरी कॉल.। (भाग -2)
आख़िरी कॉल (भाग -2)
लिंक (भाग -1)
उसे याद आ रही थी हर वो बात जो उसने अपने शुरुआती दिनों में बड़े ही ईमानदारी से कह दी थी.; सारे वायदे उसकी कानों में गूँज रहे थे..।
राहुल रो रहा था आज, "अपने कुछ फैसलों पर".।कोस रहा था अपनी कुछ आदतों को।
साल भर पहले ही एक दूसरे से मिले थे दोनों ...; राहुल के ऑफिस फ्रेंड की गर्लफ्रैंड थी रुबीना.।
उस दोस्त ने एक जगह बहुत बड़े लफड़े में फंसा कर छोड़ दिया था रुबीना को, तब राहुल ने बहुत साथ दिया औऱ रुबीना को इस प्रॉब्लम से निकाल भी दिया था।
राहुल बचपन से ही औरतों के प्रति बहुत श्रद्धा रखता था.। वज़ह ये था कि उसकी माँ ने उसके जन्म के समय अपने प्राण त्याग दिए थे !
वो एहसास करता था एक स्त्री के दुःख को , औऱ अपनी इन्हीं भावनाओं के वज़ह से वो स्कूल के ज़माने से ही किसी भी लड़की के लिए मारपिटाई करने को तैयार हो जाता था।
कॉलेज में तो लड़कियों ने उसे "फ़ायरवॉल" नाम दे दिया था.।
हाँ तो राहुल ने आदतन उसकी भी बहुत हेल्प करी, लेक़िन इस हेल्प को रुबीना प्यार समझ बैठी.।
वो राहुल के एहसानों से दबे महसूस कर रही थी खुद को.।
उसकी भी ग़लती नहीं थी, वो टूट चुकी थी औऱ राहुल उसे दोबारा जोड़ने में लगा था.; रोज़ घण्टों फ़ोन पर बातें होती थी। कभी - कभार ऑफिस की छुटियों में कॉफ़ी, बर्गर वगैरह के बहाने भी राहुल उसे बुला लिया करता था, वो चाहता था कि जितनी जल्दी हो सके रुबीना फ़िर से अपने जीवन को जीने लगे .।
ये सिलसिला बढ़ता जा रहा था, लेक़िन राहुल को अब रुबीना का उसके प्रति झुकाव महसूस होने लगा था.;
लड़कियों के साथ ये समस्या पुरानी है, "अगर कोई लड़का ईमानदारी से उनकी हेल्प कर दे या करने की कोशिश करे तो वो उसे या तो प्रेम समझ बैठती है या फ़िर उस लड़के को दिलफेंक घोसित कर देतीं हैं।"
उसके लिए ये पहली बार नहीं था इसीलिए वो निश्चिंत था। पढाई के दिनों में भी दो-तीन लड़कियों को समझा - बुझाकर इनकार किया था उसने.।
वो सोच रहा था रुबीना भी समझ जाएगी समझाने से।
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✍️ आदित्य प्रकाश पाण्डेय