आख़िरी कॉल.। (भाग -5)
आख़िरी कॉल.। (भाग -5)
लिंक (भाग -4)
रुबीना ने चुटकी लिया , "अब जो कुछ भी हो आप ही किस्मत में हो तो झेलना तो पड़ेगा न..; हहहहह। "
राहुल भी हंस रहा था.... "किस्मत औऱ मैं.! मोहतरमा मैं किस्मत नहीं फूटी क़िस्मत हूँ...."
दोनों हँसने लगे........
राहुल हँस रहा था , "लेक़िन कहीं न कहीं रुबीना के भईया का उससे मिलने आना उसे हज़म नहीं हो रहा था..।
उसके दिमाग में कई बातें चल रही थी !"
इसी उधेड़बुन में आख़िर उसने पूछ ही दिया , "अच्छा ये बताइये आप अपने भइया से क्यूँ मिलवा रहे हो मुझे, कोई खास बात है क्या..?"
रुबीना औऱ तेज़ हंसने लगी , लेक़िन इस हंसी के पीछे एक हल्का सा डर था ..... उसने राहुल को बिन पूछे इतना सबकुछ प्लान जो कर लिया था।
ख़ैर उसको एक अलग लेवल का विश्वास हो चुका था अपने प्रेम पर।
वो ख़ुश थी अपने फ़ैसले से.।
वो अंदर से तो बहुत झिझक रही थी लेक़िन बाहर ख़ुद को बिल्कुल सहज दिखाते हुए बोला, "ये लीजिये! अब लड़की वाले लड़के से क्यूँ मिलने आते हैं भला..! जाहिर सी बात है भइया आपसे शादी के लिए बात करेंगे "
राहुल मामला भाँप गया था।
वो स्तब्ध था... लेक़िन बाहर से ख़ुद को सहज बनाये रखने की भरपूर कोशिशें कर रहा था.!
अपने जीवन में कई बार उसने लड़कियों के प्रस्ताव ठुकराए थे, लेकिन ये पहली बार था जब राहुल निःशब्द हुआ जा रहा था.....।
औऱ इसके पीछे केवल एक हीं वजह थी के रुबीना पिछली लड़कियों से बिल्कुल अलग थी..; "कहीं न कहीं राहुल भी प्रभावित था उससे"
एक खोंखले से ठहाके के साथ राहुल ने अपना आख़िरी अस्त्र भी छोड़ दिया....... "हएं...! आपके भईया मुझसे शादी करना चाहते हैं..! अरे भई समझाइये उनको मैं उस टाइप का लड़का नहीं हूँ... हमको माफ़ करें... हम तो किसी लड़की से भी शादी करने के लिए अभी प्रिपेयर नहीं महसूस कर रहे हैं" माफ़ कीजियेगा ......।
रुबीना अचानक से चुप हो गई थी !
उसको शायद आभास हो गया था कि राहुल के मन में क्या चल रहा है.., उसका हंसना बन्द था...।
वो एकटक राहुल को निहार रही थी...। अब उसकी आँखें चमकने लगी थी औऱ एकाध बूंदे गालो पर लुढ़क चली थीं....।
वो चुप थी, बिल्कुल चुप..!
राहुल ने बहुत दिनों बाद रुबीना को चुप देखा था, औऱ ये चुप्पी राहुल को परेशान किये जा रही थी..।
उसने खुद से वायदा किया था कि अब कभी रुबीना को रोने नहीं देगा, कमसे कम तबतक जबतक उसके साथ है !
वो सोच रहा था, कोई जवाब जिससे रुबीना फ़िर से ठहाके भरने लगे. ...।
राहुल अभी सोच में ही डूबा था तबतक उसके हाथों पे कुछ ठंढा स्पर्श महसूस हुआ........ ये रुबीना थी!
उसके सामने नीचे अपने घुटनों के बल रुबीना याचक की मुद्रा में थी...।
उसकी आँखों से गिरती एकाध बूंदे अब निरन्तरता के भाव में झरने का रूप ले चुकी थी।
राहुल के आँखों में एकटक झाँकती उसकी आँखें बहुत कुछ कह रहीं थीं....।
राहुल भी अच्छे तरह से पढ़ पा रहा था उसकी आँखों को..।
अचानक से रुबीना की आवाज़ ने दोनों की चुप्पी से उपजी शांति को तोड़ा, "राहुल मुझसे शादी करलो प्लीज़....!
मैंने आपके ही साथ जीवन की कल्पना कर ली है...;
मैं जानती हूँ कि ये मेरी ग़लती है कि मैंनें आपके फ़्रेण्डशिप को प्रेम मानकर जिया है....!
मैं गुनहगार हूँ आपकी..., औऱ मुझे अपने इस गुनाह की हर सज़ा मंजूर है...!
लेक़िन, प्लीज़ राहुल आप मुझे अपना लो........ मैं आपके बग़ैर जी हीं नहीं पाऊँगी....।"
उसकी आवाज़ में याचना थी..; गिड़गिड़ाहट में मार्मिकता ऐसी कि क्या बताऊँ, ऐसा लग रहा था जैसे कोई मरने वाला अपना जीवन भीख में मांग रहा हो...।
राहुल बहुत परेशान था..! उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था , या फ़िर उस समय वो चुप रहना ही उचित समझ रहा था..।
रुबीना के आँसू उससे देखे नहीं जा रहे थे... लेक़िन फ़िर भी वह चुप था.।
अचानक रुबीना के मोबाइल में रिंगटोन बजी, उसने दो - तीन रिंग्स में ही कॉल रिसीव कर लिया.।
कॉल पर सद्दाम की आवाज़ गूँजी, "हाँ किधर हो तुमलोग .? मैं अभी ये होटल के बाहर खड़ा हूँ , अंदर आ जाऊँ क्या..?"
रुबीना ने बिना जवाब दिए कॉल काट दी.।
वो उसे रिसीव करने बाहर की तरफ ही जाने लगी, उसकी आँखों से आँसू अभी भी वैसे हीं झर रहे थे...;
जैसे - तैसे आँखें पोंछते हुए वो बाहर निकलने लगी.।
क्रमशः......
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✍🏻 आदित्य प्रकाश पाण्डेय