"दो दीवानें" ग़ज़ल
"दो दीवाने"
जमाने भर को "ख़ुदारा" क्या कोई काम नहीं?
हमारे "इश्क़" के पीछे ही पड़े रहते हैं!
जहाँ भी जाती है, लाचार ये नजरें मेरी,
कुछ नजऱ ताक में मेरी ही गड़े रहते हैं।।
कौन समझाए इन "बेदर्द बेदिमाग़ों" को,
यूँ न, हर वक्त अपनी जिद्द पे अड़े रहते हैं।।
आँधिया आती है आयेंगी, नसीबा जाने!
"दो दीवाने" हमेशा साथ खड़े रहते हैं।
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©आदित्य