Sunday, March 8, 2020

आख़िरी कॉल.। (भाग -3)



आख़िरी कॉल (भाग -3)


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वो सोच रहा था रुबीना भी समझ जाएगी समझाने से।

रविवार का दिन था , 6 बजे सुबह में ही फोन की घण्टी बजी.; "राहुल दो दिनों से लगातार ऑफिस से लेट आ रहा था सो नींद अधूरी ही मिल पाई थी".।
वो झल्लाते हुए बोला  "हाँ.. कौन इतनी सुबह यार....??"

उधर से रुबीना की आवाज़ गूँजी "हाँ जी मैं.......  गुड मॉर्निंग..... अभी सो रहे होंगे आप मुझे मालूम है.... सॉरी, सॉरी.. लेकिन अर्जेंट था इसीलिए आपको परेशान किया... आप सुन रहे हो ना...? आप गुस्सा तो नहीं हुए ना..??

राहुल की झुँझलाहट  अब मुस्कुराहट में तब्दील हो चुकी थी, उसने हँसते हुए कहा "अरे देवी मैं क्यूँ गुस्सा होने लगा आप पर ! आप बोलने का मौका ही कहाँ देते हो कि मैं जवाब दूँ..... कहिये क्या खास बात है जो इतने बेताब हुए जा रहे हो आप..?"

          रुबीना कुछ ज्यादे  हीं जल्दीबाज़ी में थी; हड़बड़ाहट में उसने बस इतना ही बोला "कॉफ़ी कोलाज आ जाइयेगा ढाई बजे औऱ हाँ कुछ अच्छे कपड़ों में, किसी से मिलवाना है आपको..... ओके... बाय.. "
और उसने फ़ोन कट कर दिया.।


राहुल भी फ़ोन सिरहाने रखकर फिर से लेट गया, उसने ये सोचा कि कोई फ़्रेंड होगी या होगा! 
"उसे ये सब बातें इतनी सीरियस भी नहीं लगती थी औऱ इनका ज्ञान भी नहीं था..।"
फ़ोन में डेढ़ बजे का अलार्म सेट करके वो फ़िर नींद के आगोश में समा गया.।


इधर रुबीना अपने तैयारियों में व्यस्त थी.;
बार - बार नाखूनों में रंग लगाती और हटाती .! 
क्या करे उसे तो ये भी नहीं मालूम था न, कि राहुल को कौन सा रंग भाता है.। वो तो आरम्भ में थी एक ऐसे प्रेम कहानी के जिसके लिए राहूल ने कुछ सोचा भी नहीं था।
रुबीना के मन में तरह - तरह के सवाल आ रहे थे । वो खुद से पूछ रही थी, औऱ खुद को ही जवाब दे रही थी.!
"क्या भाई जान को राहुल जी पसन्द आएंगे.?  मेरा हाल फ़ातिमा जैसा तो नहीं होगा ना.? क्या मुझे प्रेमविवाह करने की आजादी मिलेगी, या मेरा भी जबरन किसी औऱ के साथ निकाह करा दिया जाएगा"
लेक़िन इन सभी सवालों के जवाब में उसे सद्दाम का कहा याद आ जाता था, "देख रुबीना तू पढ़ रही है औऱ हमलोग तुझे ऐसे जाहिलियत नहीं देखने देंगे तुझे जब मर्जी जिससे मर्जी तू निकाह कर सकती है बस लड़का अच्छा चुनना जो हमें पसन्द आये......!"


प्रोफेसर बशीर  अपने इलाके के इज्जतदार लोगों में गिने जाते थे, और नौकरी रहते इज्ज़त के साथ पैसे भी अच्छे कमाएँ थे, दो ही बच्चे थे इसलिए उन्हें अच्छी शिक्षा भी नसीब हो पाई थी।
सद्दाम रुबीना से दो साल बड़ा था औऱ ग्रेजुएशन के बाद लाल मस्जिद के एक ट्रस्ट में काम करने लगा था!
                   कुल मिलाकर पूरे मुहल्ले के लिए ये परिवार बिल्कुल वैसा ही था जैसे कौवों के बीच हंस हो....।




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©

✍️ आदित्य प्रकाश पाण्डेय