Monday, May 21, 2018

"किसी का नाम लो जिसको, मोहब्बत रास आई हो.!" भाग :- 1

किसी का नाम लो जिसको... 

[ भाग-1 ]

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           “फैन हूँ आपका. आप जानते ही हैं. पर एक शर्त है सर! इसे फेसबुक पर पोस्ट जरूर करिये लेकिन कृपया नाम बदल दें. 

वो क्या है, कि आप ही का शेर है...,

           देखेगा जो मुझे तुझे पहचान जाएगा, 

           आँखों में तेरा अक्स है ठहरा हुआ अभी...!

तो दोनों की बदनामी होगी. मेरा क्या है? पर शायद उसकी एक भरी पूरी दुनिया हो!”.

           “अवश्य. मुझे तो बस एक कहानी चाहिये. नाम असली देकर मुझे किसी को रुसवा नहीं करना. आपकी शर्त मंजूर”. मुझे लगा कि वह व्यक्ति एक पीर का ऐसा भरा बादल है जो कहीं बरस न सका और बरसना तो चाह रहा है किन्तु शायद ऐसी भूमि में जहां बरसना बेकार न जाये.

           सिगरेट से मुझे एलर्जी है, पर वे बिना सिगरेट के शायद शुरू नहीं कर पाते, तो मैंने किसी तरह बर्दाश्त किया. धुँआ एक गोल छल्ला बनाता उठ रहा था और मैंने इस अदा से छल्ले बनाने वाला बहुत दिनों बाद देखा था. मैं सोच रहा था – चलो कोशिश करते है. आज कल फेसबुक पर बहुत प्रेम कहानियाँ आ रहीं हैं. शायद मेरी छौंक - बघार से कोई अच्छी कहानी मिल जाए लोगों को. पार्क में अब सन्नाटा पसरने लगा था. काफी देर तक चुप्पी रही. लगा कि शायद आज का दिन बेकार जाएगा, पर नहीं, गला साफ़ कर वे जैसे – तैसे शुरू हुये.

           “देखिये, जिसे आज कल जिसे लोग प्यार कहते हैं वो उठती उम्र की एक ललक भर है. कहानियों, उपन्यासों को पढ़ कर, फिल्मों आदि को देख कर जी में उठता है कि कोई होना चाहिए. बस सबकी नज़र बचा कर पेंगें मारने में मज़ा आता है. पर जाहिर होने पर जो बे-भाव की पड़ती है, तो भूत उतर जाता है” – वे शुरू हो चुके थे.

           “मुझ पर भी सवार हो गया खब्त, पर जान-बूझ कर नहीं, अनजाने में. एक डोर थी जो खींचती चली गयी, और जब वह डोर टूटी तो मैं एक कटे पतंग की तरह था, जिसका आसमान उसे अपनाने से इनकार कर चुका था. उन दिनों मैं एक इंटर कॉलेज में बायोलॉजी का लेक्चरर था, नई पोस्टिंग थी. नया नया एम एस सी कर के निकला था, दो चार जगह आवेदन किया और वहाँ सेलेक्ट हो गया. कॉलेज की आदतें अभी बरकरार थीं. अदा से पढाता था, मेहनत से भी. साथ के अध्यापक पीठ पीछे आलोचना करते लेकिन मुझे परवाह नहीं थी. 

           हर क्लास में आठ – दस लड़कियाँ थी. फर्स्ट इअर में शायद बारह थीं, जिनमें चार को आकर्षक कहा जा सकता था. लेकिन एक तो बस तोहफा थी. चूंकि कॉलेज में कोई एम एस सी किया बायोलॉजी का टीचर न था तो जियोलॉजी और बोटनी दोनों की क्लास मुझे ही लेनी पड़ती थी, सो मैं वैसे भी एक महत्वपूर्ण हैसियत रखता था. और रिजर्व्ड भी रहता था. सो इम्प्रेशन अच्छा था. क्लास में मेरे घुसते ही सन्नाटा छा जाता था. सभी मुझे ध्यान से सुनते थे. नोट्स लिखवाता तो क्लास में कापियों के खुलने और कलम के चलने की सरसराहट फ़ैल जाती, और सभी बहुत ध्यान से सुन कर लिखते क्यों कि मुझे दुहराने की आदत नहीं थी. पांच मिनट पहले क्लास छोड़ देता था.

           स्टूडेंट्स मेरे प्रति कितने आकर्षित थे, यह उनकी नोटबुक से पता चल जाता था. सुन्दर कवर लगी कापियां जिन पर रंग बिरंगे अखबारी या पत्रिकाओं के पन्नों के कवर. ड्राइंग साफ़ सलीके से बनी हुई. हेडिगों में रंगीन स्याही का इस्तेमाल. पर नोट्स कितने भी मन से लिखे जांय मैं कभी फेयर या गुड जैसे रिमार्क्स नहीं देता था.

    "वह इसी बात को लेकर पहली बार आयी थी."



भाग:- 2