Monday, March 9, 2020

आख़िरी कॉल.। (भाग -4)




आख़िरी कॉल.। (भाग -4)


                   कुल मिलाकर पूरे मुहल्ले के लिए ये परिवार बिल्कुल वैसा ही था जैसे कौवों के बीच हंस हो....।


दोपहर के डेढ़ बज रहे थे औऱ सिरहाने के पास पडे  फ़ोन में बेतरतीब अलार्म बजा जा रहा था.; कोई दो - तीन बार इग्नोर करने के बाद आखिरकार राहुल को जगना ही पड़ा.!

                वो उठा मुँह धोया तबतक उसे अचानक से याद आया कि अभी रुबीना से मिलने भी जाना है .।
वो हड़बड़ी में इधर - उधर दौड़कर तैयार होने लगा ; रविवार का दिन था तमाम काम थे उसके जिम्मे लेक़िन अभी तो ये हाल था कि उसके नहाने के लिए भी समय नहीं बच पाया था।


फ़िर क्या हमेशा की तरह ढेर सारा बॉडी-स्प्रे , और सिर में हल्का तेल पोतकर   राहुल तैयार हो गया था!  ब्लू जीन्स औऱ सफ़ेद कुर्ता पहनकर राहुल बिल्कुल वैसे ही तैयार हुआ था जैसे रुबीना ने कहा था.।


राहुल ने जल्दी से बाइक निकाली औऱ रेस्टोरेंट की तरफ निकल पड़ा , रास्ते में भी उसके मन में कोई ख़ास मीटिंग जैसे भाव  नहीं थे! वो लगभग अब मान चुका था कि रुबीना किसी फ़्रेंड से ही मिलवाने वाली है...।


"क्या होगा ज्यादा से ज्यादा कॉफ़ी पीयेंगे औऱ फ़िर एकाध घण्टे बातें होंगी.; कोई ज़्यादा पहचान वाला तो होगा नहीं.... औऱ होगा भी तो कैसे रुबीना के अलावा उसके परिवार के बारे में भी कोई बात नहीं किये आज़तक रिश्तेदारों की तो पूछो ही मत....
ख़ैर, कोई भी होगा मुझे अच्छे से आता है कि कैसे मिलना है उनसे , उसे महसूस नहीं होने दूँगा की पहली बार मिला हूँ ..!"
राहुल खुद में बुदबुदाये जा रहा था, कभी - कभी अपनी योग्यताओं पर खुद को शाबाशी भी दे रहा था..।
औऱ दे भी तो क्यूँ नहीं वो वास्तव में शाबाशी योग्य था, "उसमें बहुत सी आदतें असामान्य थी.. दुर्लभ थीं"


               राहुल अभी इन्हीं बातों में डूबते - उतराते आगे बढ़ रहा था की अचानक बारिश होने लगी। शहर का ये इलाका अभी खाली प्लॉट्स से भरा पड़ा था, कुछ प्लॉट्स में कंस्ट्रक्शन तो चल रहा था लेक़िन बारिश की वजह से वहाँ भी काम बंद पड़ गया था.।


राहुल चाहता तो वहीं किसी तिरपाल के नीचे खुद को भीगने से बचा लेता, लेक़िन घड़ी देखकर उसका इरादा बदल गया.; 

        "वो भींग भी सकता था औऱ कड़े धूप में तप भी सकता था ..; ना कि केवल रुबीना के लिए बल्कि किसी भी महिला के लिए उसकी यहीं सोच रहती, यहीं स्टैंड रहता.!

 ये सनातन पोषित सभ्यताओं की सुंदरता है.।"


गाड़ी कुछ सड़को औऱ गलियों से होती हुई अब कॉफी शॉप के सामने ख़डी हो चुकी थी.; राहुल ने हैंडल लॉक किया औऱ अपने बालों को झटक कर पानी सुखाने लगा. ।
बारिश कुछ ज़्यादा तो नहीं आई, लेक़िन कुर्ते को भिगोने के लिए पर्याप्त थी.; भींगे हुए सफ़ेद कुर्ते से पीला जनेऊ स्पष्ट औऱ आकर्षक दिख रहा था।


राहुल ज़्यादा भक्तिभाव तो नहीं रखता था, लेक़िन अपनी सभ्यता औऱ परम्पराओं के लिए उसके हृदय में अत्यंत सम्मान की भावना थी..।
              वो जनेऊ पहनता था, कभी - कभार पास वाले मंदिर पर पुजारी बाबा को कुछ पैसे भी दे आता था., "उसको ये मालूम था कि इस नए दौर में सो-कॉल्ड मॉडर्न हिंदुओं के मोहल्ले में पुजारी बाबा को कभी -  कभार भूखे पेट भी सोना पड़ जाता है.।"


             उसने मुँह हाथ से पानी पोंछा औऱ शॉप के अंदर प्रवेश कर गया। कुछ ज़्यादा भीड़ नहीं थी... पीछे कोने वाले टेबल पर रुबीना इन्तिज़ार में बैठी थी.।
       "लेक़िन ये क्या वो तो अकेली है!" राहुल   सोचते हुए आगे बढ़ा.। 

रुबीना ने उठकर राहुल को प्रणाम किया औऱ दोनों आम

ने - सामने वाली कुर्सी पर बैठ गए.।


ये क्या आप किसी से मिलवाने वाले थे मुझे ..? राहुल ने सवाल किया....


रुबीना हल्की डरी हुई सी लेक़िन ज्यादा एक्साइटेड थी उसे विश्वास था कि भाई को राहुल पसन्द आएंगे...; वो मुस्कुरा के बोली "अरे बाबा वेट कीजिए भाई जान निकल गए हैं वहां से, अब पहुँचने वाले होंगे... शायद बारिश में कहीं रुक गए है। अब हर कोई आपकी तरह मेरे लिए भींग तो नहीं सकता ना..."


राहुल हल्का चौंक कर बोला...

 "आपके भइया आ रहे हैं..., वो भी मुझसे मिलने!

वाह.! मैं कुछ ज्यादा हीं पॉपुलर नहीं हो गया आजकल.! "

              

 रुबीना ने चुटकी लिया , "अब जो कुछ भी हो आप ही किस्मत में हो तो झेलना तो पड़ेगा न..; हहहहह। "


राहुल भी हंस रहा था.... "किस्मत औऱ मैं.! मोहतरमा मैं किस्मत नहीं फूटी क़िस्मत हूँ...."


दोनों हँसने लगे............



लिंक (भाग -5)



©


✍🏻 आदित्य प्रकाश पाण्डेय