"किसी का नाम लो जिसको, मोहब्बत रास आई हो" भाग:- 3
किसी का नाम लो जिसको...
[ भाग - 3 ]
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रोज का तमाशा हो गया....
एक दिन जब कापियां जांचने को मंगवाईं.,
जाने क्यों पहले उसी की कापी देखने का जी किया. कॉपी खोज कर निकाली.
कॉपी बहुत सुन्दर से सजी थी. पहले पन्ने पर मैंने कभी पहले ध्यान नहीं दिया था, पर एक शंख के पीछे से निकले एक कमल की सुन्दर चित्रकारी थी और कलात्मक अक्षरों में लिखा था “मधु”.
मैंने पृष्ठ पलटा. आख़िरी पृष्ठ पर जहां मैं दस्तखत करता, वहाँ एक तह किया कागज़ रखा था. मैंने खोला और पढ़ने लगा –
पेन्सिल से लिखा था – "आप इस तरह मुझे रोज क्लास में खडा करेंगे तो मैं पढाई छोड़ दूंगी."
मुझमें सिहरन भर गयी. अजीब सा नशा छा गया. देर तक सोचता रहा. क्या करूं ? क्या लिखूं? मन करता था कि एक लम्बा सा पत्र लिख दूं. पर जब्त किया.
उसी कागज़ पर लिखा – “आपको पढाई में मन लगाना चाहिए!” कागज़ वहीं रख कर कॉपी बंद कर दी. सारी कापियां जांचने के लिए कमरे पर उठा ले गया. दूसरे दिन क्लास में सबको खुद ले जाकर बांटी, ताकि स्लिप ठिकाने पर बिना किसी खतरे के पहुँच जाए.
दूसरे दिन लैब में वो प्रेक्टिकल की कॉपी मेरी टेबल पर रख कर चली गयी. खोल कर देखा – एक पृष्ठ तह किया हुआ.
लिखा था – “आप ही बताइये क्या करें? किसी की छवि आँखों में बस गयी है. किताब में अक्षर की जगह किसी की सूरत दिखती है. नींद आती नहीं. कौर निगला नहीं जाता. मैं मन मंदिर में जिसकी आरती उतारती हूँ उसे मुझ पर दया नहीं आती. मुझे जला कर उसे अच्छा लगता है. ठीक है. मेरी किस्मत में जलना है, तो जलेंगे. उफ़ तक न करेंगे. उसे मेरी कदर होगी पर मेरे न रहने पर.”
मैं पागल सा हो गया. हर लफ्ज जैसेे सुई चुभा रहा था. मन मसोसने सा लगा. मैंने फिर एक लंबा ख़त लिखने की सोची, पर फिर जब्त कर गया. उसी कागज़ पर बस एक पंक्ति लिखी – “जलाने वाला पहले खुद जलता है, तभी किसी को जला पाता है”.
कापियों के बीच ख़त आते जाते रहे. आज कल जैसे स्मार्ट फोन का ज़माना तो था नहीं. व्हाट्स एप, मेसेंजर, कुछ नहीं.
(मैंने महसूस किया है कि आज कल तो फेसबुक के पोस्ट भी प्रेमपत्र की भूमिका निभाने लगे हैं. लड़की को पता है कि दरअसल यह पोस्ट उसके लिए है, बाकी लोग वाह वाह कर रहे हैं. फिर उसने भी एक पोस्ट डाल दी, तो लड़के को भी पता है कि जवाब आ गया. और कुछ नहीं तो इनबॉक्स तो है ही. फोन करने की जरूरत नहीं. चिट्ठी इधर लिखी गयी, उधर बिना खतरे के डिलीवर हो गयी. तब यह सब नहीं था. वो चोंगे वाला फोन था. कभी फोन करो तो पहले सौ सवाल. आप कौन? किससे बात करनी है? क्या काम है? वेट करिए. फिर हाँ - हूँ- ठीक है, अच्छा. और लगता जैसे चोरी कर रहे हैं. पी सी ओ के बाहर दस लोग अपनी बारी के लिए खड़े रहते, बाहर निकलने पर यूं देखते जैसे नंगा कर देंगे.)
दूसरों को देख कर ही मैं इन चोंचलों में नहीं पड़ा. बस किताबें और कापियां ही डाकिया बनती रहीं. अकेले में मिलने की तो कोई सूरत ही नहीं थी. अब पढ़ाने में मेरा मन नहीं लगता था. मुझे अफ़सोस हुआ कि उसे घर पर ट्यूशन पढ़ाने की बात से मैंने इनकार क्यों किया. ऊपर से गज़ब ये कि हाईस्कूल के एक शिक्षक महोदय ने उसकी ट्यूशन शुरू भी कर दी थी.
एक दिन मेरे सिर में दर्द था. मैंने सोचा क्लास में कहला दूं कि बच्चे अपना रिविजन करे, कल टेस्ट लूँगा. फिर मधु को देखे बिना मन नहीं माना तो खुद जाकर कह आया. लैब में आकर बैठ गया.
मैं सर थामे आँखें बंद किये बैठा था कि एक आवाज सी हुई, कोई टेबल के पास खड़ा था.
देखा तो मधु थी. उसके खुली हथेली पर एक कॉम्बीफ्लाम की टेबलेट थी. “कहाँ से लाई?” पूछा. “पास में रखती हूँ. कभी कभी जरूरत पड़ती है.” कहा और चली गयी.
चपरासी को बुला कर पानी मंगवाया, टेबलेट निगली, पर दर्द तो जैसे टेबलेट पाते ही गायब हो गया था.
इंटरवल में वह फिर आयी –“अब दर्द कैसा है सर?”
“ठीक है. टेबलेट के लिए धन्यवाद. पर आपको बार – बार मेरे पास नहीं आना चाहिए. किसी ने नोटिस किया तो?” सोचा कैसे कहूं? सर का दर्द तो ठीक हो गया पर दिल का दर्द तो बढ़ता जा रहा है.
“लाइए आपका सर दबा दूं सर!”
मैं पूरी तरह परास्त हो चुका था. मुझे खुद को संयत करने के लिए बहुत श्रम करना पड़ा. “मधु! अपने पापा से कह दीजिये मैं आपको ट्यूशन पढ़ाने को तैयार हूँ.”
पहले तो जैसे वह सहम उठी, पर अचानक उत्साह दिखाते हुये बोली – “सच सर? आप हमें पढ़ाएंगे? थैंक यू सर!” और तेजी से चली गयी.
मुझे आश्चर्य हुआ – “वह फक्क क्यों पड़ गयी थी?”
दरअसल अब यह इतना आसान नहीं था. मैं नहीं समझ सका, पर वह समझती थी. पहले तो एक पढ़ाते ट्यूटर को हटा कर मुझे लगाना ही मुश्किल था. क्या कारण बताती? फिर अपने पापा को कन्विंस करना! पर उसने किया..!
फिर भी जब मैं पहले दिन उसके घर पढ़ाने पहुंचा तो उसके पापा का ठंढा बर्ताव एक अजीब तनाव की तरह लगा. जो अध्यापक उसे पढ़ा रहे थे, वे भी खासे नाराज थे.
बाद में उनकी नाराजगी भारी भी पडी..;