कुछ बातें उसके झुमकों की!
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उस लड़की पास सैकड़ों झुमके हैं। बीते सालों में वो दोनों सैकड़ों बार मिले हैं। हर बार वो कुछ भिन्न निदर्शित होती है। वही मुख, वही नेत्र, वही भाव भंगिमाएँ और वही प्रेम उसका, किंतु फिर भी कुछ भिन्न लगती है हर बार।लड़के ने ध्येयपूर्वक विचार किया तो ज्ञात हुआ कि हर बार झुमके कुछ भिन्न होते हैं। हर बार भिन्न होती है झनझनाहट, हर बार भिन्न होती है उसके मुख की आभा। इन भिन्नताओं को असंख्य रंगों और सितारों में समेटना भी असंभव है।उसके पास सैकड़ों झुमके हैं। चूँकि आभूषणों के प्रति कन्याओं के हृदय में एक अलग ही बेक़रारी होती है।मिसाल के तौर पर, अभी कुछ रोज़ पहले, एक नमूना देख रहा था, जिसमें एक लड़की तमाम गहने पहने हुए खड़ी है और नमूने में हर एक गहने का नाम लिखा है। चौंकाने वाली बात है कि कंगन, चूड़ा, बंगडी, चूड़ियाँ, पूँचियाँ, हथफूल, अँगूठी एवं अरसी तो केवल हाथ व कलाई के गहने हैं और झाझर, पगपान, बिछिया, घुँघरू, ग़ौर, पायजेब, कड़ा, तोड़ा, हिरणामन, नेवरी एवं आँवला पाँव के गहने हैं।सब से कम गहने कान में होते हैं : “कर्णफूल” और “झुमका”।श्रीमद्भागवत में “कर्णफूलों” की तुलना कनेर के पुष्पों से की गयी है : “कर्णयो कर्णिकाराम्” अर्थात् श्रीकृष्ण के कानों में कर्णिकार के पुष्प ही कर्णफूल बनकर सुशोभित हैं।झनझनाना, खिलखिलाना, कसमसाना, गुनगुनाना, जगमगाना, कितने सारे गुण झुमकों में निहित हैं।फ़िल्म “दो रास्ते” (१९६९) में राजेश खन्ना को मुमताज़ के झुमकों को चूमते और मुमताज़ को कसमसाते देखा है, तब से विश्वास ही नहीं होता कि “झुमके” निर्जीव हैं। कहीं तो अवश्य होगी वो दुनिया, जहाँ झुमकों की खेती होती होगी या पुष्पों/फलों के स्थान पर उगते होंगे झुमके!झुमकों की बनावट में बहुत प्रकार के प्रयोग होते हैं, भिन्न भिन्न रूपों में सामने आता है किंतु उसमें अभियोजित पुच्छ उपांग जो लटकन की भाँति संलग्न रहते हैं, लगभग प्रत्येक रूप में समान होता है। वो होता है, मानो बाजरे के दाने और उनका एक समूह।कभी कभी तो प्रतीत होता है कि “झुमका” बाजरे की संतति है। वैसा ही खुरदरा, कठोर, चमकीला और गोलमटोल। कदाचित् उसे देखकर ही “दुष्यंत” ने कहा होगा :“तेरे गहनों सी खनखनाती थी,बाजरे की फ़सल रही होगी!”##प्रसंग है, शिव और पार्वती के विवाह का।शिव अपने खेमे में विवाह हेतु सज्ज हो रहे हैं, शृंगार हो रहा है उनका। शृंगार तो गया किंतु अब शिव स्वयं को देखें कैसे? स्वयं के शृंगार का परीक्षण कैसे हो?शिव ने शृंगार उपरांत अपने सेवकों से खड्ग माँगा : “खड्गे निषक्तप्रतिमं ददर्श।” और उस खड्ग में स्वयं को देखा। खड्ग का ऐसा प्रयोग शिव ही कर सकते हैं।कदाचित् पार्वती निकट होतीं तो उनके नेत्रों में स्वयं को देख लेते शिव, अथवा उनके झुमकों में लटकते असंख्य दर्पणों में देख लेते स्वयं को!कभी कभी लगता है कि दर्पण की असंख्य संतति के प्रतीक हैं “झुमके”। उसी तरह चमकते और प्रतिबिंब निर्मित करते ढेर सारे दर्पणरूपी “झुमके”।##एक रोज़ लड़के ने कहा, सुनो जान, इस बार मिलेंगे तो तुम मेरे सामने बैठना, मैं अपनी कलाई तुम्हारे काँधे पर रखूँगा और तुम्हारे कान की लवें ललाऊँगा।लड़की ने मासूमियत से कहा, अपने कलाई में कड़ा पहन कर न आना, मुझे कई बार चुभ गया है।दोनों मिले, और लड़के ने अपनी कलाई लड़की के काँधे पर रखी तो कानों की लवों पर “झुमकों” को प्रहरी पाया। सूरज-से गोल, सुनहली ज़ंजीर से कानों से जुड़े “झुमके” मानो कानों की रक्षा करते हुए कृष्ण के सुदर्शन चक्र हों।कभी कभी लगता है कि सुदर्शन चक्र की संतति हैं “झुमके”। उसी के जैसे गोल, धारदार और रक्षक।##प्रेम “संगीत” से आद्यन्त निबद्ध होता है।नदी-नाव, फल-फूल संजोग की भाँति प्रेम और संगीत का साथ है। प्रेम का मोहक संगीत होता है : “झुमके” की झनझनाहट, चूड़ियों की खनखनाहट और पाज़ेब की रुनझुनाहट।यूँ तो लड़के को गिटार के तारों को मींजना भी आता है, मगर बहुत कोशिशों के बाद भी कभी “झुमकों” जैसा संगीत न आ सका!क्योंकि झुमकों के स्तर का संगीत किसी वाद्ययंत्र से प्राप्त नहीं होता, हो ही नहीं सकता। शिवमंगल सिंह “सुमन” के अनुसार प्रत्येक वस्तु का अपना एक अनुपम संगीत है :खेती लहलहाती है।गेहूँ गहगहाता है।मक्का महमहाती है।अरहर सरसराती है।बजरा हरहराता है।अलसी आँख मलती है।जौ में ज्वार आता है।मगर झुमके के विषय में चूक गये “सुमन”। काश कि “झुमका” भी पृथ्वी पर उगता तो उसके विषय में कहते : “झुमका झनझनाता है!”रात्रि के एकांत में लड़का सोचता है :विज्ञान की इतनी प्रगति हो गयी है कि सुदूर ग्रहों की हलचल व समुद्र के गर्भ में होने वाली ध्वनियाँ भी सुनी जा सकती हैं। क्या कुछ ऐसी तकनीक नहीं है कि उस लड़की के झुमकों की झनझनाहट सुनी जा सके, जब हृदय सुनना चाहे तब सुनी जा सके। क्या ऐसा कुछ संभव नहीं?कहते हैं, सर्प अपनी त्वचा से श्रवण करता है। इसीलिए अकसर लड़के को यह भी लगने लगता है कि वो भी शायद वैसा ही एक सर्प है, अपने हर ओर उस लड़की के झुमकों की झनझनाहट को सुनता है।।
लेखक:- ©©
Yogi Anurag
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