किसी का नाम लो जिसको...
[ भाग - 6 ]
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उन्होंने मुझसे बात करने से इनकार कर दिया.
बहुत अपमानजनक स्थिति थी. पहले सोचा रेजिग्नेशन दे दूं. पर नौकरी छोड़ना इतना आसान नहीं था. कमरे पर आ कर चक्कर काटता रहा.
उसके पापा तक बात पहुंचे उसके पहले उन से साफ़ साफ़ कहने का मन हुआ. सोचा कि बता दूं कि मैं मधु से शादी करने को तैयार हूँ. यही मेरे हिसाब से सबसे उचित था. मधु जैसी लडकी मिल जाना भी एक किस्मत की बात थी और सबके मुंह भी बंद हो जाते.
कपडे पहन कर निकला पर हिम्मत टूट गयी. जाने क्या सोचेंगे? बड़े लोग हैं. लेट कर परिस्थिति पर विचार कर रहा था कि आँख लग गयी.
रात के नौ बज रहे थे. दरवाजे पर दस्तक हुई. पड़ोस वाले सज्जन थे. जल्दी से मुझे घसीटते हुये बाहर लाये, कमरे पर ताला डाला, और मुझे ले कर अपने घर में घुस गए. उनकी पत्नी कुछ पूछें इसके पहले उन्होंने उन्हें चुप रहने को कहा और बताया कि मधु के पापा कुछ लोगों के साथ मोहल्ले के बाहर नीम के नीचे अँधेरे में खड़े थे, और कह रहे थे कि उस मास्टर को जिन्दा मत छोड़ना. फिर मेरे कमरे पर कुछ लोग आये. मेरे बारे में पूछ-ताछ की. मुझे घर में छुपा कर वे सज्जन बाहर निकले और बताया कि मास्साब तो शाम को ही गाँव चले गए.
कुछ अता-पता ?
नहीं साहब. हमें किसी के गाँव घर से क्या लेना? पर आयेंगे ही. आप फिर आ जाइएगा.
बच कर निकल गया साला.
मैं सुन रहा था.
आवाजें शांत हो गयीं.
दो चार दिन तक मेरे कॉलेज के कुछ टीचर्स और अन्य लोगों ने प्रयास कर के मामले को ठंढा कर दिया. मैं फिर कॉलेज जाने लगा. पर मधु का स्कूल आना बंद था. मुझे लगता कि सबकी आँखें मुझपर ही टिकी हैं. लगता कि क्लास में स्टूडेंट्स सर झुकाए मुझ पर मुस्कुरा रहे हैं.
कुछ दिनों बाद मधु भी कॉलेज आने लगी. उसका रंग उतर गया था. जैसे किसी लम्बी बीमारी से उठने के बाद होता है,
वैसे, दिन में तो समय कट जाता था पर रात बहुत भारी पड़ती थी. ज़िंदगी में पहली बार प्यार किया, और वह एक गहरा दर्द दे गया. लगता कि ज़िंदगी लुट गयी है. बस गम था. बेइन्तेहाँ गम.
एक दिन रात को मैंने दिल उड़ेल कर एक लंबा ख़त लिखा. अब प्रतीक्षा नहीं हो पा रही थी. उसकी टास्क की कॉपी में रख कर उसे आपने हाथ से दिया.
लैब में आ कर बैठा ही था कि पीछे से मधु आ गयी. मेरा ख़त उसने कांपते हाथों से मुझे पकड़ाया और तेज़ कदमों से लौट गयी. मन में जोर से कसक उठी.
क्या वह बेवफा निकली???