Saturday, May 26, 2018

"किसी का नाम लो जिसको, मोहब्बत रास आई हो.!" (अंतिम भाग)



किसी का नाम लो जिसको.....

[ भाग - 8; अंतिम भाग ]

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मैंने थरथराते हाथों से उसे खोला. डर लग रहा था कि फट न जाए. लिखा था...


           “मेरे मन मंदिर के देवता! मैं आपके चरणों की दासी बनने योग्य नहीं हूँ. मेरी आराधना अभी अधूरी है. मेरी पूजा सच्ची नहीं है. तभी तो मैं आपको पा न सकी. मेरा यह जीवन अकारथ हुआ. जन्म – जन्म से आपको पाने की तपस्या इस जन्म में भी सफल न हो सकी. मैं तपस्या करती रहूँगी पर मंजिल अभी दूर है. मेरे सर्वस्व! मेरे प्रिय! मेरे पति! मैं आपकी हूँ और आपकी रहूँगी! लेकिन मैं आपका जीवन संकट में नहीं डाल सकती. आपको कुछ हो इसके पहले मैं खुद को मार डालूँगी. और यदि पापा ने अब कुछ सुना तो आपको जिन्दा नहीं छोड़ेंगे. उस दिन भी आप मिले नहीं तो बच गए. और फिर मम्मी ने मना लिया कि यदि दुबारा कुछ हो तभी कोई कदम उठायें. सो मेरी बात मानिए और यहाँ से जल्दी कहीं दूर चले जाइए. इस जनम में मिलना संभव नहीं और माता – पिता का मन दुखा कर मैं कुछ पाना भी नहीं चाहती. मेरे गले में शादी के नाम पर फांसी का फन्दा कसा जा रहा है और अगर मैंने इनकार किया तो सीधा इसका मतलब होगा आपकी मौत. मेरा शरीर दूसरे के हवाले करने की तैयारी हो चुकी है. 

अतः आपको कसम है. न आप मेरी राह में आयें, न मिलें, न कोई पत्र आदि लिखें. समझ लीजिये, मैं अब इस संसार में नहीं रही.
             सिर्फ आपकी जो आपकी न हो सकी.
                                      मधु”

            पत्र को पुनः तह करते समय मेरी एक गहरी सांस निकल गयी. मैंने पत्र और तस्वीर उन्हें वापस किया. उन्होंने दोनों चीजें लेकर फिर बटुए में रख लिया. मुझसे बोले – “सर! एक बार वो शेर दुहरा दीजिये!” मैं कुछ कहने सुनने की स्थिति में नहीं था. मैंने पूछा  – “कौन सा?” 


           “वही... किसी का नाम लो...”


           मैंने भारी मन से दुहरा दिया –


            “मैं मान लूंगा कि मुझमें कमी रही होगी,

मगर,
    किसी का नाम लो जिसको मुहब्बत रास आयी हो!”


           पर यदि उन्होंने मुझसे मेरे मन का कोई मेरा शेर कहने को कहा होता तो शायद मैं कहता -            "खुदा की इतनी बड़ी कायनात में मैंने,
           सिर्फ एक शख्स को माँगा, मुझे वही न मिला!"


           पर मैंने कहा नहीं.!


           उन्होंने अपनी आँखें पोछीं और पुछा – “कब पोस्ट करेंगे इसे?” 
           जी में आया कहूं – “मैं तो सिर्फ कहानियाँ लिखता हूँ दोस्त. तुमने तो इसे जिया है.” 

पर मेरे मुंह से निकला – “देखते हैं”.
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[ कहानी पूर्णतः काल्पनिक है और किसी भी व्यक्ति के जीवन से इसकी घटनाओं का मिलना मात्र एक संयोग है. ]


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