किसी का नाम लो जिसको....
[ भाग - 5 ]
____________________________________
सब सो रहे हैं पर मैं तब से बैठी हूँ. हेलो! आप ही हैं न सर! हेलो!”
मेरे जिस्म में एक सुरसुरी दौड़ रही थी. मैंने होटल के कार्ड से पता बताया.
“आप वेट कीजिये सर! मैं अभी पहुँचती हूँ.”
मैंने फ़ोन काटा, पैसे दिये और किस्मत को धन्यवाद देते हुये होटल लौट आया.
पौन घंटे बाद मेरे कमरे के दरवाजे पर नॉक हुई. जो लडकी अन्दर आयी वह वह मधु नहीं थी जो मेरे क्लास में पढ़ती थी या जिसे मैं ट्यूशन पढाता था, या जिसे मैं जानता था.
यह कोई दूसरी ही मधु थी. सजी – संवरी. मैंने उसे अब तक सलवार सूट में ही देखा था. आज उसने कामदार साड़ी पहनी थी. वह बड़ी लग रही थी, भव्य लग रही थी, सुन्दर तो बहुत लग रही थी. अन्दर आकर उसने कमरा अन्दर से बंद कर दिया.
वह खिली – खिली थी और मन-मगन. पहली बार हम एकांत में मिले थे. उसके पास बहुत सी बातें थी. मैं चुप चाप सुन रहा था और उसे देख रहा था. उसने बताया कि वह इवनिंग शो का बोल कर आयी है. हमारे पास दस बजे तक का समय था.
मैंने चाय मंगाई. चाय पी कर वह बिस्तर पर लेट गयी, निःसंकोच. वह एक तने हुये धनुष की तरह लग रही थी. उसके नेत्रों में बेपनाह आमंत्रण थे. किन्तु वे आमंत्रण नितांत सहज थे. मैं अपराध बोध महसूस कर रहा था. मैं खुद को उससे कमजोर महसूस कर रहा था.
पहले मेरा विचार था कि कमरे में ही वक़्त बिताया जाए, किन्तु अब मुझे बाहर निकलना ही उचित लगा.
हम बाहर आये. एक अनबूझ प्यास से गला सूख रहा था. मैंने कोकाकोला पीने का प्रस्ताव रक्खा. दो - दो बोतल पीने के बाद कुछ प्यास कम हुई. मैं आशंकित था किन्तु वह एकदम सहज थी. मुझे लगा, वह जाने क्या सोच रही होगी मेरे बारे में.
एक रिक्शा कर के हम हजरतगंज पहुंचे. हम साढ़े नौ बजे तक खूब घूमे. खूब बातें कीं. मेरे लिए वह एक ज़िंदगी का शानदार दिन था. कम से कम उस दिन मुझे यही लगा था.
मैं तीन दिन वहाँ रहा. वह तीन दिनों तक रोज आती रही. और इन तीन दिनों में हमने एक दूसरे को पूरी तरह पा लिया.
स्कूल खुले तो वह सेकंड ईअर में आ गयी थी. और हम पहले से अधिक खुल गए थे. वह अकसर लैब में आ जाती. हम बातें करते रहते.
पर यह लोगों की नज़र में आ गया था. एक दिन मैं लैब में नहीं था. उसने मेज की दराज में एक लंबा सा ख़त डाल दिया और चली गयी. लैब बॉय एक नया छोकरा था जो बेहद शातिर था. उसने स्टाफ रूम में आ कर सबको बता दिया. सबको सांप सूंघ गया. वहाँ वह अध्यापक महोदय भी थे, जो मधु को पहले ट्यूशन पढ़ाते थे. वे सीधे प्रिंसिपल के पास पहुंचे, और प्रिंसिपल, वाइस प्रिंसिपल के साथ जा कर लैब के मेज की दराज से ख़त बरामद करा दिया.
मैं क्लास ले रहा था. मेरे पुराने चपरासी ने आकर बताया. मैं लैब की ओर भागा. पर बात हाथ से निकल चुकी थी. मैं देर तक सन्नाटे में रहा. फिर मैंने प्रिंसिपल से बात करनी चाही. उन्होंने मुझसे बात करने से इनकार कर दिया...;