Thursday, April 5, 2018

(वो जब हम "मुस्कराते" थे)

(वो जब हम "मुस्कराते" थे)

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वो मेरे गाँव की गलियां,
        महकती "बेल" की कलियाँ।
सभी मन को लुभाते थे,
        "वो जब हम मुस्कराते थे ।।"
वो खेतो में जो हरियाली,
           लटकती "धान" की बाली।
वहीं "दिन बीत जाते" थे,
         "वो जब हम मुस्कराते थे ।।''

चमकती चाँदनी रातें,
     वो "टिप-टिप" करती बरसातें।
"उन्हें" भी खूब भाते थे,
          "वो जब हम मुस्कराते थे ।।"
नहर पे "दूर" तक जाना,
            वो पैदल सबको दौड़ाना।
दोस्तों को "सताते" थे,
          "वो जब हम मुस्कराते थे ।।
किसी का "रास्ता तकना"
     वो आँखों का भी "ना थकना"।
ये वो भी "जान जाते" थे,
           "वो जब हम मुस्कराते थे ।।"
बडे होने की "ख्वाहिश" थी,
         गलत हर "आजमाइश" थी।
फिर थक कर "बैठ जाते" थे,
            "वो जब हम मुस्कराते थे ।।"


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वहीं "होली"; वो "दिवाली",
          कभी "गुज़रे" न जो ख़ाली।
अकेले "बीत जाते" है,
🤔   
        "क्या.? अब हम मुस्कराते है.!"




(पुराने दिनों की एक झलक)


©©

✍🏻 

आदित्य