Wednesday, August 1, 2018

"अपनों जैसे गैर"



अपनों जैसे गैर!



नोट:- ये विस्तृत कहानी नहीं है बाकी के कुछ भाग अभी भी डायरी में पड़े हुए हैं!

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ये दसवीं की वार्षिक जाँच परीक्षा का समय था।

अब धीरे-धीरे हमलोग भी बदलने लगे थे ; 
हमारी आवारगी अब जिम्मेवारियों के दबाव में आने लगी थी। आगे की जिंदगी का फ़ैसला लेना और बाकी चीजों के लिए भी अब समय देना होता था।

अगर कम शब्दों में लिखें तो, "अब हमलोग मेच्योर होने लगे थे।"

हाँ तो , जाँच परीक्षा का पहला दिन था।
12वीं की नई बिल्ड़िंग में बैठे हुए सभी पढ़ाकू लड़के-लड़कियों में अचानक हमारी एंट्री हुई। पेपर कॉपी बांटी जा चुकी थी और हमलोग पहले ही दिन लेट हो गए थे। सबलोग ऐसे देख रहे थे जैसे हंसो के बीच कुछ कौवे घुसने लगे हो।

लेकिन एक चेहरा सबसे इतर हमे करुणा की भावना से निहार रहा था, जैसे अगर उसके बस में हो तो अभी लिखी-लिखाई कॉपी हाथ मे दे दे😊

गोरे से गोल चेहरे पर दया का भाव झलक रहा था और चेहरा लाल हुआ जा रहा था।
मैं खाशा आकर्षित हुआ।
क्या पता वो पहले स्कूल आती थी या नहीं लेकिन हमने तो उन्हें पहले नहीं देखा था।
और हाँ पहली बार किसी लडक़ी के चेहरे पे नज़र रख के छोड़ दिया था🙃

खैर हल्की डांट-फटकार के बाद हमे भी कॉपी-पेपर के दर्शन हुए!

और फिर अपनी चिर - परिचित लास्ट बैंच की ओर रुख कर गए हमलोग।
        बाकी बच्चे तो ऐसे लगे थे जैसे IAS बन जाएंगे इसी लिखने से , लेकिन हम सब जानते थे ।
अरे इन्हीं कॉपीयों से रोज मुलाक़ात हो जाती थी शाह जी के भुजा वाले ठेले पर और पुल पर पकौड़ी खाते हुए।

खैर, मेरे पास तो एक वजह और मिल गई थी पेपर न लिखने की जैसे-तैसे उनको निहारते हुए मैंने भी कुछ हल्का-फुल्का लिखा.!
और जमा होने का इंतिजार करने लगा।

शायद उन्होंने भी मेरी मनोदशा को भाँप लिया था! और कभी- कभी मेरी चोर नज़र की चोरी भी पकड़ ली जाती थी, ये बात और है कि अब जाके एहसास होता है कि आखिर वो क्यूँ देखती थीं हमारी ओर।

सारा हाल उसी दिन मैंने राहुल को बता दिया; और शायद ये मैंने गलत किया।
लेकिन आखिर करता क्या वो मेरे सबसे क्लोज जो था!

अब रोज उनका मुझे देखना और मेरा उन्हें देखना इसी क्रम में चलता रहा।
आख़िर लास्ट पेपर के दिन राहुल ने ही प्लान किया कि  भाई नम्बर दे देते हैं। 
वैसे भी बोलना मेरे बस में था नहीं। तो हमने एक चिट पे नम्बर लिखा और उनकी हाई बेंच के फाँके मे दबा दिया इससे ज्यादा कुछ करने की हिम्मत नहीं हुई और हमलोग बाहर निकल आये।

एग्जाम बीत गया और स्कूल की भी छुट्टी हो गई। कुछ दिन तक ट्यूशन भी चला लेकिन अब भी उनका व्यवहार बिल्कुल वैसा हीं था। मुझे तो कभी - कभी शक़ होता था कि वो चिट इनको मिला या नहीं।

लेकिन शायद 6-7 रोज बाद शाम को मेरे फोन पे एक नए नम्बर से कॉल आया उस जमाने मे तो truecaller जैसा कुछ था नहीं और हमारे पास फोन भी ऐसे होते थे कि सामने वाला देख के मुँह बना लेता था; नोकिया 2700 क्लासिक को छप्पन जगह से चिपका के कैसे भी काम चलाना पड़ता था।

हाँ तो, फोन पे वो हीं थी उनके बोलने के लहजे से ही प्रतीत हो गया था!
पहली बार किसी लड़की के सवालों का जवाब देना था मुझ जस गँवार आदमी को।
पहले उन्होंने हिंदी में बतियाना शुरू किया लेकिन बहुत जल्दी ही भाँप गए कि मैं थोड़ा असहज महशुस कर रहा हूँ।
और फिर अपनी भोजपुरी जिंदाबाद!

कुछ तीखे सवालों का जवाब देने के बाद ही नॉर्मल बातें शुरू हुई।
और वहीं एक दूसरे को जानने समझने का दौर। बातचीत के दौरान ही मालूम हुआ कि फोन उनकी माताजी का था और उधर से मिस्ड कॉल आने पर ही कॉल बैक करना था।
पूरे 12 मिनट के लगभग बात हुई उसदिन।

फिर कभी कभी दिन में एक - दो बार बात हो जाती थी।
बोर्ड एग्जाम्स की तैयारियों की वजह से हमलोग ज्यादा ध्यान पढ़ाई में हीं दे रहे थे।

और फिर परिक्षा काफी करीब आ गई और हमारी बातचीत को हमने रोक लगा दी कुछ दिनों के लिये।

उनका सेंटर कमला राय महाविद्यालय गोपालगंज था शायद।

 परिक्षा के दौरान उन्होंने एक दो बार बात की थी बस पूछने को की पेपर कैसा गया। 

परीक्षा बीत गई और कुछ दिन की छुट्टी मिली हमें इस दौरान हमलोग काफ़ी घुल-मिल गए।

रोज बात हो जाती थी उनसे बस ऐसे ही दो महीनें गुजर गए और कुछलोग आगे की पढ़ाई के लिए गोपालगंज जाने लगे, जिनमे मैं भी था।

फिर बंजारी ब्रह्न स्थान के करीब का वो मोहल्ला और पंडित जी के मकान का वो कमरा और कुछ पुराने दोस्त, यहीं हो गई थी जिंदगी।
उस समय गोपालगंज ही ज्यादा दूर परदेश जैसा प्रतीत होता था और हर शनिवार को घर भाग जाते थे हमलोग! "खैर ये भी एक लंबी कहानी है फिर कभी लिखूँगा।"

हाँ तो मुद्दे पे आतें हैं।
बात उनसे अब भी प्रतिदिन होती थी या फिर ऐसा समझिए कि अबतक सबकुछ सही था।

वो आगे की पढ़ाई भी मिश्रा सर के यहाँ ही कर रही थी ।
और कुछ लोग और रह गए थे अपने टीम से वो भी वहीं ट्यूशन लेते थे और शायद उनका ये फैसला सही था।

मैंने Gopalganj आके जो पाया वो तो मेरी आत्मा जानती है; लेकिन जो गंवाया आप उससे परिचित हो जाएंगे इस कहानी के जरिये।

हाँ तो हमारी बातचीत ऐसी ही चलती थी फिर अचानक उनकी बातों में राहुल का जिक्र आने लगा,

"पता है आज आपके मित्र मुझे घूर रहे थे बहूत देर तक"
"पता है आज ये हो गया, वो हो गया वग़ैरह"
और मैं सभी बातोँ का बस एक ही जवाब देता था , "राहुल बहुत अच्छा लड़का है! मैं उसके बारे में गलत सोच ही नहीं सकता"

और मेरी ओर से महाशय के शान में तारीफों के पूल बांध दिए जाते थे! 
अरे मुझे क्या मालूम था कि किसी दिन इसी पूल से मेरा जिगरी दोस्त मेरी ही 💕💕 को लेकर फरार हो जाएगा🤕

और धीरे - धीरे बातें बदलने लगीं, "अब बातें मुझसे होती थी लेकिन इनके बारे में"

लेकिन मैं अब भी आने वाले खतरे से बेख़बर था । 
हाँ ये वो समय था जब मुझे गाँव से लोकल इनपुट्स द्वारा जानकारी मिलने लगी थी कि "आजकल राहूल भाई भाभी से ज्यादा ही करीब होने लगे हैं।
और मैं मूरख ये समझता था की सबकुछ मेरे वास्ते हो रहा है।

लेकिन अब धीरे धीरे उनकी बातों से लगने लगा था कि कुछ तो गड़बड़ है।
फिर उन्होंने बोला कि उनके पास फोन नहीं रहेगा कुछ दिन तक बात नहीं हो पाएगी, मेरे लिए कुछ मुश्किल था लेकिन नामुमकिन नही। मैनें भी हामी भर दी, मुझे क्या मालूम था कि ये उनसे आखिरी बातचीत है ।
उन्होंने भी एहसास तक न होने दिया कि ये रिश्ता अब टूट चुका है।

खैर लगभग 20 दिन बाद विश्वस्त सूत्रों ने जानकारी दी कि आजकल उनको राहुल बाबू घुमा रहे हैं।

सुनकर थोड़ा असहज लगा लेकिन अजीब नहीं,
बस इस बात का मलाल था कि मान लिया वो तो गैर लड़की थी जिससे मेरा कुछ दिनों से ही रिश्ता था लेकिन ये तो दोस्त था मेरा😔

हाँ इस बाबत राहुल के ओर से पहली सफ़ाई तब मिली जब हमलोग एक दोस्त के यहाँ निमंत्रण में मिश्र सोनहुला गए हुए थे।
उनकी आँखें सब बयाँ कर रहीं थी ,  मैंने भी कुछ ज्यादा कुरेदा नहीं बस बात को वहीं बन्द किया और ख़ुश देखने की तमन्ना जाहिर कर आये।

फिर इस बाबत कोई बात ही नही  हुई राहुल से।
हाँ ये बात और है कि ये लोग लगातार रिलेशनशिप में रहे।

अभी कुछ दिन पहले मालूम हुआ कि उनकी शादी हो गई है, और मेरा भाई बिन ब्याहे बिदुर हो गया😳

कूछ अफशोस और हल्का गुस्सा आता है अब।
"अगर तेरे से कुछ होना नहीं था तो फिर.......😡"

"ख़ैर कुछ भी हो भाई है तू मेरा💞"

(कहानी पूरी तरह से वास्तविकता को परोसने की कोशिश का नतीजा है; इसीलिए कुछ त्रुटियाँ मिलेंगी इसीलिए आप सभी से क्षमाप्रार्थी हुँ)

(ऐसा भी नही है कि मैं बहुत संस्कारी बच्चा हुँ!राहुल ने जो भी किया इसमे उसकी कोई गलती नहीं मानता मैं! और हाँ वास्तव में राहुल एक अच्छे दोस्त के साथ-साथ मेरा भाई भी है और मुझे गर्व है ऐसे भाई पर)

***सभी पात्र पूर्णतः काल्पनिक हैं!!

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✍ आदित्य प्रकाश पाण्डेय